(नागपत्री एक रहस्य-26)
हां, हमें भी ऐसा ही लगता है, सभी लोगों ने एक स्वर में कहा...हमने भी कई बार ऐसा अनुभव किया, लेकिन आज तक इतने गौर से नहीं सोचा, क्या वाकई ऐसा हो सकता हैं???
यदि हां, तब तो यह आश्चर्य से ज्यादा खुशी की बात है, हमें इसे बहुत ज्यादा पब्लिश करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अभी सभी बच्चे छोटे हैं, और ऐसी पब्लिसिटी होने पर हम नहीं चाहते कि उनका ध्यान भटके।
मेरे विचार से यदि सभी अपने-अपने अनुभव, अपनी सोच और समझ के अनुसार सही समझते हैं, तब तो और भी ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि यदि वाकई इतना शक्तिशाली आभामंडल किसी का हुआ, तब उसका प्रभाव जितना फायदेमंद होगा, उतने ही उसके नुकसानदेह भी हो सकते।
हमें सतर्क रहकर अपने मूल उद्देश्य की ओर ध्यान बनाये रखना चाहिए, ना कि अब उस बच्चे को खोजें जिसके इतने प्रभाव कारी परिणाम सामने आ रहे हैं, क्योंकि अप्रत्यक्ष तौर पर हमें इसका लाभ भी हुआ है।
देखिए वर्षों से व्हील चेयर पर बैठा हुआ बुजुर्ग जिसे लगभग लगभग मेडिकल साइंस मरा हुआ समझ रहा था, आज उनमें हरकत नजर आई, क्यों ना हम सब मिलकर हर वीकेंड में आज की तरह इस प्रक्रिया को दोहराते रहे, शायद और अच्छे परिणाम सामने आए, कहते हुए सभी ने प्रिंसिपल की और देखा।
उनके तो मन में जैसे यही चल रहा था, समिति का निर्णय सुन जैसे उनकी मन की मुराद पूरी हो गई, क्योंकि आज तो सिर्फ एक प्रयोग किया गया था, वह भी अचानक मन में आए विचार को लेकर और सब ने स्वीकृति इसलिए दी, क्योंकि नए योगा टीचर ने जब आभामंडल की बात की तब एक प्रश्नवाचक चिन्ह कुछ लोगों ने उठाया था, और उन्होंने ही कह दिया कि यदि सच्चे मन के बच्चे जिनका आभामंडल (औरा) बहुत प्रभावी होता है।
यदि किसी बीमार व्यक्ति को स्पर्श कर ले तो वह किसी मेडिसिन से कम नहीं, अचानक सभी ने चुनौती के तौर पर प्रिंसिपल सर के पिताजी को चुना, और इस विषय पर प्रयोग करने के लिए संयुक्त रूप से हामी भरते हुए इस प्रयोग को गुप्त रखने की भी अपनी स्वीकृति दी,
क्योंकि कदाचित पालक संघ इस बात को कतई स्वीकार नहीं करता, और फिर सब ने वीकेंड में एक भव्य मेले का आयोजन किया, सभी बच्चों को उत्साहित होकर भाग लेने को कहा और अंत में प्रिंसिपल सर के पिता जी से आशीर्वाद लेने की परंपरा तय की गई, जिससे किसी ना किसी बहाने से सभी बच्चे उनको कम से कम एक बार स्पर्श अवश्य करें।
सभी बच्चों की उपस्थिति निश्चित करने का नोटिस भी निकाल दिया, इस बार के अचानक उत्सव में सभी बच्चों को हर्षोल्लास से भर दिया, और सबने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, और सभी ने आते और जाते समय उन बुजुर्ग के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया, और वाकई परिणाम चौंकाने वाले थे, कि आज उनके शरीर में अचानक इतने वर्षों बाद हरकत नजर आ रही थी।
सभी ने योगा टीचर की बात को दूसरे दिन नतमस्तक होकर स्वीकार किया, और आज जब योगा टीचर ने योगा और आभा मंडल के बारे में बताना शुरू किया, तब सभी ने उनकी बातों को पूर्ण सहमति से स्वीकार किया, और अपने अपने अनुभव उनको कह कर सुनाएं, और उत्साह पूर्वक सभी ने तय किया, कि अब हर वीकेंड पर ऐसे छोटे-छोटे कार्यक्रम इस प्रकार आयोजित किए जाए, कि हर बच्चा किसी ना किसी बहाने से उन बुजुर्ग व्यक्ति को अवश्य स्पर्श करें।
वाकई परिणाम चौंकाने वाले सामने आने लगे, अब धीरे-धीरे प्रिंसिपल सर के पिताजी ठीक होने लगे, स्कूल एक आस्था का स्थान बन गया है , सबमें भाईचारा आपसी विश्वास और सहकारिता बढ़-चढ़कर दिखाई देने लगी, सभी ने यह तय किया कि प्रिंसिपल सर के पिताजी को स्कूल प्रांगण में छुट्टी के दौरान घुमाने का प्रावधान रखा जाए, और उनके हाथों बच्चों से गुब्बारे चॉकलेट इत्यादि वितरित किया जाए ।
क्योंकि महज एक माह में उनकी तबीयत में इतना सुधार देख एक उत्साह के साथ प्रयोग को निरंतर जारी रखने का भी संकल्प था, और हो भी क्यों ना क्योंकि कल तक जिनका शरीर निष्प्राण था, आज वे खुद व्हीलचेयर के सहारे बिना दवाइयों के घूमने में सक्षम हो रहे, इतना चमत्कारिक प्रभाव और भला क्या देखने में आता।
प्रिंसिपल सर के पिताजी वैसे भी इस स्कूल के मुख्य निर्माता भी रहे, लेकिन किसी कारणवश अचानक बीमारी में उन्हें बिस्तर पर रुक जाने को विवश कर दिया, और आज वे पुनः इसी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की आभा शक्ति का उपयोग कर पुनः स्वस्थ होते जा रहे थे।
चंद महीनों तक चला यह प्रयोग आज तक पूर्ण रूप से सफल हुआ, जब लक्षणा जो अभी महज चौथी कक्षा की छात्रा थी, ने आकर गुब्बारे की रस्सी का एक हिस्सा उनके हाथों में थमाया और गुब्बारे को अपने हाथ से छोड़ते हुए कहा, अब आप ऐसा सोचिए कि ये गुब्बारा आपको ऊपर की ओर खींच रहा है, आप अवश्य अपने स्थान पर उठने में सक्षम हो जाएंगे, कहते हुए उनके दूसरे हाथ की उंगली को लक्षणा ने पकड़ कर इस तरह उठाया, कि जैसे वह उन्हें उठने को प्रेरित कर रही हो, और वाकई चमत्कारिक रूप से भी अचानक उठ खड़े हुए।
बस फिर क्या था, पूरे स्कूल में खुशी का माहौल हो गया दो खुशियों के साथ...
पहला प्रयोग सफल हुआ और दूसरा संस्था प्रमुख आज अपने पैरों पर जो खड़े होकर चल पाने में समर्थ हुए, जिसे एक समय में मेडिकल साइंस ने लगभग असंभव सा बता दिया था, और शायद प्रिंसिपल सर ने भी उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन इन सबके बीच अब यह सोच लेना कि प्रयोग समाप्त हुआ।
ऐसी भक्ति जिसका प्रत्यक्ष अनुभव कुछ संस्था प्रमुख ने देखा हो, उसे कैसे भला बंद किया जा सकता था, उन्होंने पूरे स्टाफ को बुलाकर सबकी सहमति ली, और एक विशेष समय सुबह ध्यान के लिए बीच मैदान में सब को एक साथ एकत्रित होने को कहा,
साथ ही साथ यह निर्णय लिया गया कि बच्चों के ग्रुप को अलग अलग लोगों में बांटा जाए, और प्रत्येक ग्रुप के बच्चों को एक एक वृक्ष लगाने और उसे संरक्षित करने का भार उसी ग्रुप को सौंपा जाए, और ध्यान दिया जाए कि वाकई कुछ परिणाम नजर आते हैं।
किसी चरण में एक फूल को ग्रुप के सभी बच्चों के हाथों से गुजारा जाता है, और उसे एक नंबर के साथ रख दिया जाता है, यह देखने के लिए आखिर कौन सा फूल एक ही वातावरण में स्वस्थ नजर आता है।
ऐसे अनेकों प्रयोग किए जा रहे थे, और ग्रुप में लगातार बच्चों की अदला-बदली हो रही थी, लेकिन हर बार सकारात्मक परिणाम वहां से आते जिस ग्रुप में लक्षणा होती, अब धीरे-धीरे सब का ध्यान लक्षणा की ओर आकर्षित होने लगा, लेकिन शायद कुछ प्रयोग अभी भी शेष थे, लेकिन क्या ??
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
18-Oct-2023 10:55 AM
👌👌👌👌
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Punam verma
01-Aug-2023 02:24 PM
Very nice
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